Posts

Showing posts with the label निबंध

Violent and Evil Oraon People

Image
The Oraon or Uraon tribe is a small minority community that can be found in different parts of India and South Asia. While they are not indigenous to Jharkhand state or the eastern part of India, their ancestors used to speak a language called Kurukh, which belongs to the Dravidian language family group. Although a small minority still speak Kurukh, these primitive Oraon people have nothing to do with the Santhals, Mundas, Hos, and Bhumij of Jharkhand, who belong to the Austroasiatic Munda ethnic background and are the original inhabitants of East India, Mayurbhanj, and Keonjhar districts of Orissa.   Anthropologists, ethnologists, and linguists have claimed that these primitive Oraons used to live in the southern parts of India but then migrated to other parts of South Asia. Oraons are very different and distinct from Austroasiatic Munda people in terms of looks, behavior, nature, physical characteristics, etc.   I have seen and observed with my own eyes,   Oraons are very vio

बिगड़ती शिक्षा प्रणाली

Image
हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सबसे बड़ा दोष यह है कि यह बहुत सैद्धांतिक है। एक शिक्षित व्यक्ति के पास केवल किताबी ज्ञान है। वह व्यावहारिक (practical) चीजों के बारे में कुछ भी नहीं जानता है। शिक्षा की वर्तमान प्रणाली अंग्रेजी को बहुत महत्व देती है। भारत कई जगहों पर यह निर्देश का माध्यम बन चुकी है। अंग्रेजी भले ही अंतरराष्ट्रीय भाषा हो सकती है। इसमें विज्ञान, प्रौद्योगिकी और साहित्य के समृद्ध खजाने हो सकते हैं। लेकिन यह हमारी राष्ट्रीय भाषा कभी नहीं हो सकती है। शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। सरकार को अंग्रेजी की तुलना में भारत की क्षेत्रीय भाषाओं को अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए। यह देश की प्रतिभा को बर्बाद करने से बचाएगा। व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता है। हमें अधिक से अधिक तकनीशियन, इंजीनियरों, डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की आवश्यकता है। लेकिन व्यावसायिक संस्थानों की संख्या ---- इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज, पॉलिटेक्निक, ITI सीमित है। बड़ी संख्या में युवा पुरुष और महिलाएं, जो तकनीशियनों के रूप में अच्छी तरह से काम कर सकते हैं, तकनीकी और व्यावसायिक ज्ञान से वंचित हैं। 10 + 2 + 3 सिस्टम को व

क्या हमारी संस्कृति मर रही है?

Image
क्या हमारी संस्कृति मर रही है? भारत में यूरोपीय लोगों के आगमन के बाद से पश्चिमीकरण का भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा है। जब यूरोपीय लोग भारत में प्रवेश किए उन्होंने लगभग हर तरह से भारत का आधुनिकीकरण किया । जिस तरह यूरोप में पुनर्जागरण ने फिर से समाज - सुधार हुआ वैसे ही अंग्रेजों ने पुनरुत्थान के साथ-साथ विज्ञान का ज्ञान और उनके साथ लाए गए लाभ और अर्ध-अंधेरे मध्यकालीन युग से शिक्षा के साथ-साथ हमें ज्ञान और विज्ञान के प्रकाश में डाला। हमारे स्वतंत्रता आंदोलन को निश्चित रूप से उन लोगों द्वारा शुरू किया गया था जिन्होंने पश्चिमी शिक्षा के लाभों को प्राप्त किया था। भारतीयों को अपने समाज के दोषों की जांच की भावना से रूबरू कराया गया। वास्तव में अंग्रेजों ने संस्कृति के पुनर्जागरण, औद्योगीकरण और शिक्षा से जुड़े कई अन्य लाभों के बारे में बताया। हालाँकि आजादी के बाद भारतीय युवाओं पर पश्चिमी संस्कृति का अधिक प्रभाव पड़ा है। एक औसत भारतीय युवा के लिए, एक सुसंस्कृत व्यक्ति को पश्चिमी शैली के कपड़े पहने और धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने के लिए जाना जाता है। शेक्सपियर

Indian Independence Day | स्वतंत्रता दिवस

Image
Independence Day |स्वतंत्रता दिवस झंडा ऊंचा रहे हमारा भारत में, स्वतंत्रता दिवस हर साल 15 अगस्त को मनाया जाता है। देश लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजों के शासन के अधीन था, अंततः अपने आप को उनके चंगुल से मुक्त करके एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया। 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस मनाने का दिन बन गया है। यह स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एक श्रद्धांजलि के रूप में भी मनाया जाता है जिन्होंने हमें जीने के लिए एक बेहतर जगह देने के लिए अपना जीवन लगा दिया। यह भारत के प्रत्येक नागरिक द्वारा बहुत उत्साह और साहस के साथ मनाया जाता है क्योंकि स्वतंत्रता दिवस उनके लिए बहुत मायने रखता है और बहुत महत्वपूर्ण है। यहां बताया गया है कि देश भर के स्कूलों, कॉलेजों के साथ-साथ देश के छात्रों और नागरिकों के लिए इसका क्या महत्व है: स्कूलों / कॉलेजों में स्वतंत्रता दिवस समारोह: चूंकि 15 अगस्त एक राष्ट्रीय अवकाश है, इसलिए देश के अधिकांश स्कूलों और कॉलेजों में एक दिन पहले स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाया जाता है। देश भर के स्कूलों और कॉलेजों में स्वतंत्रता दिवस समारोह में ध्वजारोहण, भाषण, वाद-विवाद और प्रश्नोत्तरी

नारी के अनेक रूप

Image
"यत्र नार्यस्त पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता" मुनी ने कहा है कि जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता रमण करते हैं। नारियों के बिना धार्मिक या सामाजिक कोई भी कार्य सफल नहीं होता है। भारतीय संस्कृति में नारी अतीव गौरव की अधिकारिणी सदा रही है। नारी को लक्ष्मी स्वरूप माना जाता है। "बिना धरनी बल भूतक डेरा" अर्थात नारी के बिना घर भूतों का डेरा है। अपने चरित्र बल से, साधन से, त्याग से, नारी अपनी कुल की सामज की उद्धारक बन जाती है। वास्तव में नारी सृष्टि की अनुपम कृति है। देश की रीढ़ है नारी। नारी एक है पर उनके अनेक रूप हैं। माँ के रूप में नारी जननी है, नारी माँ के रूप में अपनी संतान के हितार्थ कार्य में संग्लग्न रहती है। अपनी संतान को नौ महीने गर्भ में धारण करके तथा विविध कष्ट सहकर उसका पोषण करने के कारण माता की पदवी सबसे प्रमुख है। जगत में माता ही ऐसी है जिसका स्नेह संतान पर जन्म से लेकर शैशव, बाल्य, यौवन और प्रौढ़ा अवस्था तक बना रहता है। नारी बहन के रूप में अपने भाई के लिए मात्र रखी ही नहीं, अपना प्यार भी उसमें समा देती है। पत्नी के रूप में अपने पति के लिए अपना सर

देहज प्रथा ।

शादी के पूर्व वर पक्ष की ओर से कन्या पक्ष के सामने रुपये, सामान आदि की शर्त तिलक अथवा दहेज कहलाती है। पद और प्रतिष्ठा के हिसाब से वर का भाव कमता या बढ़ता है। इस प्रथा द्वारा वर-पक्ष कन्या-पक्ष का शोषण कर अपनी सामंतवादी प्रवृति का परिचय देता है। अनेकानेक कन्या-पिता इस शोषणवृति के भयंकर अभिशाप से अभिशप्त है। तिलक-दहेज प्रथा के भयंकर प्रचलन के कारण ही कन्या का जन्म लेना ईश्वरीय अभिशाप माना जाता है। यह तिलक-दहेज प्रथा ऐसी कलंकिनी प्रथा है जो शादी को दो हृदय का मेल न बना कर खरीद-बिक्री का सौदा बनाती हैं। कुछ लोगों का कहना है कि दहेज प्रथा का इतिहास बहुत पुराना है। पुराणों, प्राचीन ग्रंथों में इसकी चर्चा आयी है। जनक ने भी सीता की शादी में दहेज दिया है। लेकिन तब की बात और थी। उस समय कोई शर्त नहीं थी। शादी के बाद कन्या की विदाई के समय लोग खुशी से सामर्थ्य के अनुसार दहेज देते थे। आज तो स्थिति ही विपरीत है। दहेज का अर्थ हो गया है लड़के की बिक्री। इस प्रथा ने हमारी कोमल भावनाओं का गला टीप दिया है। पुत्री के जन्मोत्सव के समय ही पिता भावी संकट का अनुमान लगाने लगता है। पाई-पाई जोड़कर वह बैंक के हव

अनुशासन की जीवन में भूमिका

जीवन और जगत में व्यापक संबंध है। जीवन प्राप्त करते ही मनुष्य को जगत के नियमों के अनुरूप कार्य-संपादन करना होता है। सामाजिक नियमों का पालन ही अनुशासन है। वस्तुतः अनुशासन को पालन करते हुए व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास का सकता है। जीवन मे अनुशासन का महत्व अत्याधिक है। इसके अभाव में समाज में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। अनुशासन की आवश्यकता प्रत्येक मनुष्य के लिए है। चाहे हम शिक्षक हो या छात्र, शासक हो या शासित, मालिक हों या नौकर, अपनी सिमन्तर्गत अनुशासन का पालन हमारे लिए नितांत आवश्यक हो जाता है। एक वाक्य में हम कह सकते हैं कि अनुशासन वह सौत्रिक तंतु है जिसका संबंध समाज-रुपी जीवन के अंग-प्रत्यंग से है। अनुशासन का उद्गम स्थल पारिवारिक सदस्यों का संपर्क है। जो परिवार जितना ही अधिक समुन्नत और अनुशासित होता है, उस परिवार के बच्चे भी स्वाभावतः अनुशासन की स्वस्थ शिक्षा प्राप्त कर भविष्य में समाज की सच्ची सेवा करने में समर्थ हो पाते हैं। ऐसे अनुशासित व्यक्ति ही कुशल नागरिक बन सकते हैं। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन की आवश्यकता एक समान ही है, पर छात्र जीवन में अनुशासन

इक्कीसवीं सदी का भारत

Image
मेरे सपनों का भारत मे एक बार फिर से रामराज्य की कल्पना साकार होती है। देश में कंगाली का नामोनिशान नहीं होगा। देश में चारों ओर धन्य-धान्य से भरपूर खेत-खलिहान होंगे। देश के हर नागरिक को पहनने के लिए वस्त्र, पेट भरने के लिए भोजन तथा रहने के लिए मकान मिल जाएंगे। उस भारत में बचपन गलियों की धूल में नहीं लौटेगा। उस भारत में कोई कड़कती सर्दी की रात में फुटपाथ पर नहीं सोएगा, उस भारत में अपनी लाज बचाने के लिए वस्त्रहीन नारी को घर में बंद नहीं रहना पड़ेगा। इक्कीसवीं सदी के भारत में मजदूर की मजदूरी को पूजा का दर्जा मिलेगा। मजदूर को खून-चूस कर कोई धनवान और अधिक धनी नहीं बन पाएगा। इक्कीसवीं सदी के भारत का शासन या तो किसान के बेटे के हाथ में होगा या मजदूर की संतान के हाथ में होगा। इतना ही नहीं, यह भारत शिक्षा की रोशनी से जगमगायेगा। अब किसी बच्चे को अज्ञानता के अँधेरे में भटकना नहीं पड़ेगा। इक्कीसवीं सदी के भारत में समाज वर्गहीन होगा। ऊँच-नीच, जाति-पाती का भेद-भाव समाप्त हो जाएगा। मत्स्य न्याय समाप्त होगा, और सब को जीने का सामान अवसर मिलेगा। भारत में शोषित, परपीड़ित, वंचित और पद दलित को स्वाभिमान प

बेकारी की समस्या व बेरोजगारी

भारत में बेकारी की समस्या प्रसन्नता के लोक में दुःख का प्रवेश है और हर्ष की पूनम रात्रि में राहु का चंद्रग्रहण है। यह आर्थिक व्यवस्था की अक्षमता एवं दुर्बलता का प्रतीक है। दूसरी ओर बेकारी की समस्या देश की प्रशासनिक दुर्बलता का परिचय देती है। इस समस्या ने भारत को छिन्न-भिन्न कर दिया है। राष्ट्र का नैतिक पतन हो रहा है और सुख-समृद्धि टूट रही है। बेकारी निकम्मेपन और भटकाव की नियति है। नौजवान जिसकी भुजाओं में ताकत है मन में काम करने का उत्साह, वह भी आज चारों ओर से हार थक कर बैठ चुका है। उसकी आँखें के सामने ताश के पत्ते की तरह पत्नी की चाहत, बहन की शादी, बूढ़े माँ-बाप की बीमारी, नवजात शिशु की परवरिश की जिम्मेदारियां बिछी हैं। वह एक-एक कर नहीं, एक साथ सब को निपटाना चाहता है, पर आर्थिक अभाव उसके सारे विचारों को तह कर देता है। पिता की पनीली आँखें उसकी पढ़ाई के लिए दिए गये खर्च का प्रतिदिन चाहती हैं पर बेटे की आँख रूबरू होने से कतराती है। परिणामतः वह अपने दरवाजे पर नहीं, चौराहे पर की चाय दुकान वाले अड्डे पर बैठने लगा है, बैठकबाजों मौका ताक कर उसे अपने गिरोह में शामिल कर लिया है। उसकी रचनात्मक प

संचार क्रांति और भारतवर्ष

Image
                           भूमिका - भारत में 'वसुधैव कुटुंबकम' का विचार सदा से फलता-फूलता रहा है। इस विचार को धरती पर साकार करने की तकनीक पहली बार हुई है। विश्व के उन्नत देशों ने संचार के आधुनिकतम तरीके भारत में भी फल-फूल और फैल गए हैं। इसलिए भारत संचार क्रांति का अग्रणी देश बन गया है।                     संचार-क्रांति का अर्थ- 'संचार' का अर्थ है- संदेश भेजने का साधन। इस साधनों में डाक, तार, मीडिया, दूरभाष आदि साधन आ जाते हैं। 'संचार-क्रांति का आशय है- ऐसे साधन आश्चर्यजनक ढंग से बहुत अधिक संख्या में उपलब्ध हो जाना। आज भारत में टेलीफोन, डाक-तार , मोबाइल, रेडियो, दूरदर्शन, कुरियर, इंटरनेट जैसे अनगिनत साधन उपलब्ध हो गए हैं। आज अपना संदेश भेजना इतना सरल, सस्ता और सहज-सुलभ हो गया है कि संचार-क्षेत्र में अद्भुत क्रांति उपस्थित हो गई है।            संचार-क्रांति के लोकप्रिय साधन- भारत गरीब देश है। अधिकांश लोग गरीब ग्रामीण जनता है अब भी पोस्टकार्ड, मनीऑर्डर जैसे परंपरागत साधनों का उपयोग करत

इंटरनेट का बढ़ता दायरा

Image
आज संचार माध्यमों के दिन-प्रतिदिन होते नए आविष्कार ने संसार की दूरी को एक सेकंड और एक मिनट की दूरी में समेट दिया है। भौगोलिक सीमाओं में आबद्ध व्यक्ति सूचना प्रौद्योगिकी और संचार प्रौद्योगिकी में नित नए अविष्कार और अनुसंधान के चलते संचार की सुगम व्यवस्था की ओर बढ़ता जा रहा है। अब तो यह आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी अपने आधुनिक व्यवस्था के आलिंगन में समूचे विश्व को समेटती जा रही है। प्रगति के पथ पर मानव बहुत दूर चला आया है। जीवन के हर क्षेत्र में कई ऐसे मुकाम प्राप्त कर लिए हैं जो हमें जीवन की सभी सुविधाएं, सभी आराम प्रदान कराने में सक्षम हैं। आज संसार माव की मुट्ठी में समाया हुआ है। जीवन के सभी क्षेत्रों में सबसे अधिक क्रांतिकारी कदम सूचना और नई सुविधाएं प्राप्त कर ली गयी हैं जो हमें आधुनिकता के दौर में काफी ऊपर ले जाकर खड़ा करती हैं। ऐसे ही सूचना साधनों में आज एक बड़ा ही सहज नाम है इंटरनेट। वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी विकास के परिप्रेक्ष्य में विश्व का प्रत्येक प्राणी दूर-दराज के क्षेत्र में स्थित अपने सगे-सम्बन्धियों, व्यापार-सम्बन्धी व्यक्तियों से पारिवारिक, व्यावसायिक एवं बौद्धिक सम्प

महँगाई की समस्या

Image
महँगाई की समस्या से भारतीय जनता त्रस्त हो चुकी है। इसका मुख्य कारण है भारत की आर्थिक स्थिति की चरमराहट । आज आर्थिक दिवालियापन पूरे समाज का खून चूस रही है । कभी तो यह बनावटी और पूंजीपतियों के गोद में पलने वाले हमारे नेतागण जो समाज-सेवा अथवा सार्वजनिक जीवन व्यतीत करने के लिए कसम खाते हैं, उन्हीं के इशारे पर वस्तुओं की कीमत बढ़ाई जाती है और मंच से इसका कारण कुछ और बताया जाता है । छद्मवेशी राजनीतिज्ञों का प्रतिफलन है महँगाई की समस्या । हम रोज-रोज महँगाई का इतिहास रचते हैं। बेचारी आम जनता, जिनकी कमर लगभग टूट चुकी होती है, इस अभिशाप को झेलने के लिए बाध्य है। आजाद हिंदुस्तान का नक्शा महँगाई की तूलिका से बढ़ाया जाता है। जब से हिंदुस्तान स्वतंत्र हुआ है तब से हम इस मार से मरते आये हैं। दिव्तीय पंचवर्षीय योजना के समय मूल्यों में 35% की वृद्धि हुई और तीसरी योजना के समय 32% की। इसके पश्चात केवल एक ही साल में 1967-68 में 11% मूल्य की वृद्धि हो गयी। 1971 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ तो यह समस्या और भी गंभीर हो गयी। 1974 में महँगाई की कोई सीमा नहीं रही। अब तो यह कहना भी कठिन हो गया है कि किस