मेरे सपनों का भारत मे एक बार फिर से रामराज्य की कल्पना साकार होती है। देश में कंगाली का नामोनिशान नहीं होगा। देश में चारों ओर धन्य-धान्य से भरपूर खेत-खलिहान होंगे। देश के हर नागरिक को पहनने के लिए वस्त्र, पेट भरने के लिए भोजन तथा रहने के लिए मकान मिल जाएंगे। उस भारत में बचपन गलियों की धूल में नहीं लौटेगा। उस भारत में कोई कड़कती सर्दी की रात में फुटपाथ पर नहीं सोएगा, उस भारत में अपनी लाज बचाने के लिए वस्त्रहीन नारी को घर में बंद नहीं रहना पड़ेगा।
इक्कीसवीं सदी के भारत में मजदूर की मजदूरी को पूजा का दर्जा मिलेगा। मजदूर को खून-चूस कर कोई धनवान और अधिक धनी नहीं बन पाएगा। इक्कीसवीं सदी के भारत का शासन या तो किसान के बेटे के हाथ में होगा या मजदूर की संतान के हाथ में होगा। इतना ही नहीं, यह भारत शिक्षा की रोशनी से जगमगायेगा। अब किसी बच्चे को अज्ञानता के अँधेरे में भटकना नहीं पड़ेगा। इक्कीसवीं सदी के भारत में समाज वर्गहीन होगा। ऊँच-नीच, जाति-पाती का भेद-भाव समाप्त हो जाएगा। मत्स्य न्याय समाप्त होगा, और सब को जीने का सामान अवसर मिलेगा। भारत में शोषित, परपीड़ित, वंचित और पद दलित को स्वाभिमान पूवर्क जीने का समान अवसर मिलेगा। देश के अधिकांश लोगों को पशु-तुल्य जीवन व्यतीत करने के लिए देश से विश्वासघात नहीं करेगा। किसी को विदेशी बैंकों में भारत की पूँजी चोरी से जमा नहीं करवानी पड़ेगी। छोटे-छोटे कामों के लिए लोगों से रिश्वत नहीं देनी पड़ेगी, हिंसा का, सहारा नहीं लेना पड़ेगा। सब सदाचारी होंगे। विदुर और चाणक्य के समान चतुर लोग राजनीति में होंगे। भ्रष्ट और चरित्रहीन राजनीतिज्ञों की कहानियाँ केवल लोक कथाओं में रह जाएंगी। राजनीति सुव्यवस्थित होगी और उनका लक्ष्य अधिकतम लोगों का सुख होगा। ज्ञान-विज्ञान में विश्व का सिरमौर होगा। हमें अपने वैज्ञानिक प्रशिक्षण के लिए विदेशों में न ही जाना पड़ेगा। इसके साथ-साथ वह अंतराष्ट्रीय संगठनों में अंतरराष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने में विशेष भूमिका को निभाएगा। भारत की शांतिप्रिय नीति के सामने संसार की सामंतवादी नीति टिक नहीं सकेगी। ऐसा समय आएगा कि विध्वंसकारी बमों तथा हथियारों में होड़ लाने वाले राष्ट्र भी भारत के शांतिप्रिय प्रयासों के सामने घुटने टेके बिना न रह सकेंगे।
सारांश यह है कि मेरे सुविधाओं वाला राष्ट्र होगा। भारत की यह उन्नति मानव को हानि पहुंचाने वाली नहीं प्रयुक्त मानव सेना के लिए होगी। तात्पर्य यह है कि मेरे इक्कीसवीं सदी का भारत ज्योति-स्तंभ की भांति, प्रज्वलित होगा तथा संसार के सब राष्ट्रों का मार्ग-दर्शक होगा जिससे यह देश फिर से सोने की चिड़िया कहलायेगी।
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