Violent and Evil Oraon People

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The Oraon or Uraon tribe is a small minority community that can be found in different parts of India and South Asia. While they are not indigenous to Jharkhand state or the eastern part of India, their ancestors used to speak a language called Kurukh, which belongs to the Dravidian language family group. Although a small minority still speak Kurukh, these primitive Oraon people have nothing to do with the Santhals, Mundas, Hos, and Bhumij of Jharkhand, who belong to the Austroasiatic Munda ethnic background and are the original inhabitants of East India, Mayurbhanj, and Keonjhar districts of Orissa.   Anthropologists, ethnologists, and linguists have claimed that these primitive Oraons used to live in the southern parts of India but then migrated to other parts of South Asia. Oraons are very different and distinct from Austroasiatic Munda people in terms of looks, behavior, nature, physical characteristics, etc.   I have seen and observed with my own eyes,   Oraons are very vio

महँगाई की समस्या

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महँगाई की समस्या से भारतीय जनता त्रस्त हो चुकी है। इसका मुख्य कारण है भारत की आर्थिक स्थिति की चरमराहट । आज आर्थिक दिवालियापन पूरे समाज का खून चूस रही है । कभी तो यह बनावटी और पूंजीपतियों के गोद में पलने वाले हमारे नेतागण जो समाज-सेवा अथवा सार्वजनिक जीवन व्यतीत करने के लिए कसम खाते हैं, उन्हीं के इशारे पर वस्तुओं की कीमत बढ़ाई जाती है और मंच से इसका कारण कुछ और बताया जाता है । छद्मवेशी राजनीतिज्ञों का प्रतिफलन है महँगाई की समस्या । हम रोज-रोज महँगाई का इतिहास रचते हैं। बेचारी आम जनता, जिनकी कमर लगभग टूट चुकी होती है, इस अभिशाप को झेलने के लिए बाध्य है।

आजाद हिंदुस्तान का नक्शा महँगाई की तूलिका से बढ़ाया जाता है। जब से हिंदुस्तान स्वतंत्र हुआ है तब से हम इस मार से मरते आये हैं। दिव्तीय पंचवर्षीय योजना के समय मूल्यों में 35% की वृद्धि हुई और तीसरी योजना के समय 32% की। इसके पश्चात केवल एक ही साल में 1967-68 में 11% मूल्य की वृद्धि हो गयी। 1971 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ तो यह समस्या और भी गंभीर हो गयी। 1974 में महँगाई की कोई सीमा नहीं रही। अब तो यह कहना भी कठिन हो गया है कि किस वर्ष मूल्य का सूचकांक क्या था और क्या रहेगा।

देश के विकास के लिए अनेक तरह के प्रयास किये गए हैं, जिसके फलस्वरूप कुछ सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं। लोंगो के जीवन-स्तर में परिवर्तन भी आया है, लेकिन यह प्रतिशत बहुत कम है। हमारी जरूरत अत्यधिक बढ़ गई है। जिसके पास दो वक्त की रोटी नहीं है, वह भौतिक सुख-साधनों का जमकर प्रयोग नहीं करता है। जैसे टी.वी., रेडियो, सिनेमा, शराब, सिगरेट, सूती और विभिन्न तरह के सौंदर्य प्रसाधन। इससे माँग और पूर्ति में खास अंतर आ जाता है जिसके कारण मूल्य वृद्धि होना स्वाभाविक हो जाता है। इस स्वाभाविकता के शिकार निम्न मध्यवर्गीय और निम्न वर्ग के लोग अधिक हुए है।

माँग और पूर्ति के बीच असंतुलन होने के कारण जनसंख्या में असामान्य वृद्धि हुई है। प्रायः यहाँ हर एक मिनट में चार बच्चे जन्म लेते है, जिनके लिए जीवनयापन की वस्तुयें आवश्यकता होती हैं। यही सही है कि मृत्यु भी होती रहती है, परंतु जन्म-दर के प्रतिशत में मृत्यु-दर काफी कम है। मूल्यवृद्धि के लिए राज्य, समाज और व्यक्ति सभी समान रुप से दोषी हैं। सवाल यह उपस्थित होता है कि इस बुराई को क्यों नहीं रोकती है। सरकार इस दिशा में कई तरह से सार्थिक प्रयास कर रही है, लेकिन वह लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के कारण उसके सारे प्रयास निरथर्क साबित होने के भय से चलता है, वैसे चलने देती है। जिसका परिणाम होता है कि कर्मचारी और सरकार के बीच एक सेतु तैयार हो जाता है और गरीब जनता का जमकर शोषण होता है। जिसे नसीब का खेल मानकर जनता चुपचाप यह बोझ सह लेती है। सरकारी-तंत्र का एक भी ऐसा दफ्तर नहीं है जहाँ पैसे का खेल नहीं होता है अर्थात चारों तरफ भ्रटाचार फैला हुआ है।

आज सरकार ने जो आर्थिक परिवर्तन लागू किया है, उनके कोटा-परमिट की एक पद्धति है- जिसमें एक नए वर्ग का उदय हुआ है, वह वर्ग है दलाली का । यह वर्ग उन लोगों का है जो शासक राजनीतिक दल के सदस्य हैं और कोटा-परमिट प्राप्त करके बेचते हैं। कोटा-परमिट के कारण जमाखोरी की प्रवृत्ति को अधिक बल मिला है । विक्रेता और उपभोक्ता दोनों ही अधिक से अधिक माल अपने पास रखना चाहते हैं। इसका कारण है फिर ना मिलने का भय।

विक्रेता और उपभोक्ता के बीच संतुलन रखने हेतु असंख्य अफसरान बैठ गए हैं। भ्रष्टाचार का व्यापार कम होने के बजाय दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ती ही जाती है। इस भ्रष्ट प्रशासन ने देश के आर्थिक ढाँचे को चरमरा दिया है। उसपर उच्चतम शासन करने में असमर्थ हैं। कारण स्पष्ट है कि ये दुकानदार से घुस लेते हैं, ये उद्योगपतियों से चुनावों के लिए पार्टी के नाम पर चंदा लेते हैं। तब कौन किसको कहे और किससे? इस प्रकार भ्रष्टाचार का यह विषम चक्र चलता ही रहता है। महँगाई बढ़ने पर मूल्य के सूचकांक ऊपर उठने पर प्रत्येक क्षेत्र और प्रत्येक वर्ग के कर्मचारी वेतनवृद्धि के लिए माँग, आंदोलन, हड़ताल आदि करते हैं। मजदूर वर्ग भी अपनी मजदूरी बढ़वा लेते हैं। बढ़े हुये वेतनों के भुकतान के लिए सरकार नई मुद्रा जारी करती है और इस प्रकार मुद्रास्फीति होती है, जो महँगाई का एक अन्य कारण है।

मूल्य वृद्धि के दो अन्य महत्वपूर्ण कारण हैं- राजनीतिक और सामाजिक । हमारे श्रमिक छोटा सा भी बहाना मिल जाने पर तालाबंदी या हड़ताल कर देते हैं। उन्हें तत्काल राजनीतिक समर्थन प्राप्त हो जाता है। फलतः काम ना भी करने पर पूरा वेतन देना पड़ता है। उत्पादन गिरता है, लागत में वृद्धि होती है और कीमत अपने आप बढ़ जाती है।

महँगाई की समस्या का समाधान तो हो सकता है, लेकिन उसके लिए जनता और सरकार दोनों को प्रतिबद्ध होना पड़ेगा। सरकार को कीमतों पर नियंत्रण करना पड़ेगा और दण्ड-व्यवस्था काफी कठोर करना पड़ेगा, जिससे यह होगा कि पूंजीपति व्यापारी वर्ग वस्तुओं का मनचाहा मूल्य ना बढ़ाने पायेंगे। प्रत्येक वस्तु का दाम यदि सरकार निर्धारित कर दे तो उपभोक्ता को भी राहत होगी और बाज़ार भी स्थिर रहेगा। इससे व्यापारी वर्ग का मनोबल गिरेगा और उनमें एक डर भी बना रहेगा।

माँग और पूर्ति दोनों में संतुलन बनाये रखने के लिए यह आवश्यकता है कि उत्पादन की शक्ति को बढ़ाया जाए। जब तक माँग और पूर्ति में अंतर रहेगा तबतक मूल्यवृद्धि पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है।

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