Violent and Evil Oraon People

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The Oraon or Uraon tribe is a small minority community that can be found in different parts of India and South Asia. While they are not indigenous to Jharkhand state or the eastern part of India, their ancestors used to speak a language called Kurukh, which belongs to the Dravidian language family group. Although a small minority still speak Kurukh, these primitive Oraon people have nothing to do with the Santhals, Mundas, Hos, and Bhumij of Jharkhand, who belong to the Austroasiatic Munda ethnic background and are the original inhabitants of East India, Mayurbhanj, and Keonjhar districts of Orissa.   Anthropologists, ethnologists, and linguists have claimed that these primitive Oraons used to live in the southern parts of India but then migrated to other parts of South Asia. Oraons are very different and distinct from Austroasiatic Munda people in terms of looks, behavior, nature, physical characteristics, etc.   I have seen and observed with my own eyes,   Oraons are very vio

संचार क्रांति और भारतवर्ष

Mass and communication , essay on mass communication

                           भूमिका-

भारत में 'वसुधैव कुटुंबकम' का विचार सदा से फलता-फूलता रहा है। इस विचार को धरती पर साकार करने की तकनीक पहली बार हुई है। विश्व के उन्नत देशों ने संचार के आधुनिकतम तरीके भारत में भी फल-फूल और फैल गए हैं। इसलिए भारत संचार क्रांति का अग्रणी देश बन गया है।

                    संचार-क्रांति का अर्थ-

'संचार' का अर्थ है- संदेश भेजने का साधन। इस साधनों में डाक, तार, मीडिया, दूरभाष आदि साधन आ जाते हैं।

'संचार-क्रांति का आशय है- ऐसे साधन आश्चर्यजनक ढंग से बहुत अधिक संख्या में उपलब्ध हो जाना। आज भारत में टेलीफोन, डाक-तार , मोबाइल, रेडियो, दूरदर्शन, कुरियर, इंटरनेट जैसे अनगिनत साधन उपलब्ध हो गए हैं। आज अपना संदेश भेजना इतना सरल, सस्ता और सहज-सुलभ हो गया है कि संचार-क्षेत्र में अद्भुत क्रांति उपस्थित हो गई है।

           संचार-क्रांति के लोकप्रिय साधन-

भारत गरीब देश है। अधिकांश लोग गरीब ग्रामीण जनता है अब भी पोस्टकार्ड, मनीऑर्डर जैसे परंपरागत साधनों का उपयोग करता है। इसलिए डाकखानों में भीड़ ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। अभी भी कागजी कार्यवाही की आवश्यकता बनी हुई है, इसलिए नगरों की समृद्ध जनता ने डाकविभाग को छोड़कर प्राइवेट कैरियर सेवा का प्रयोग करना आरंभ कर दिया है। प्राइवेट कैरियर सेवा डाकसेवा की तुलना में अधिक प्रामाणिक, भरोसेमंद और चुस्त-दुरुस्त मानी जाती है। इस साधन ने कितने ही बेरोजगार युवकों को रोजगार उपलब्ध कराया है।

                             दूरभाष-

 भारत की मध्यमवर्गीय जनता का सबसे लोकप्रिय संचार-साधन है- दूरभाष। आज देश में करोड़ों दूरभाष हैं। छोटे नगरों में ही नहीं, गाँवों में भी दूरभाष सुलभ हो गए हैं। इस साधन में आश्चर्यजनक रूप से गांव और देश को, दूर और पास को तथा देश-विदेश को आपस मे जोड़ दिया है। पलक झपकते ही मात्र एक रुपये में अपने परिजनों को अपना संदेश भेजना सचमुच बहुत बड़ी सुविधा है। इसके कारण शहरी लोग चिट्ठी-पत्री तक लिखना भूल गए हैं।

                             मोबाइल-

दूरभाष से भी अधिक क्रांति लायी है- मोबाइल फ़ोन ने। यह छोटा सा यंत्र धारक की जेब मे रहता है। इसकी सहायता से पूरा विश्व हर कदम पर उसके संग रहता है और वह भी विश्व के लिए उपलब्ध रहता है। लैंड-फ़ोन के लिए तो व्यक्ति का घर या कार्यालय में होना आवश्यक है, परन्तु मोबाइल तो चलता-फिरता एटलस है। सचमुच मोबाइल के रहते दुनिया हमारी मुट्ठी में रहती है।
मोबाइल-सेवा का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसे लेने के लिए कोई भी लाइन नहीं लगाता। मोबाइल-सेवा आपके घर में आकर आपको कनेक्शन देती है। इसका बिल चुकाना भी आसान है। इसलिए वह धीरे-धीरे माध्यम वर्ग का लोकप्रिय साधन बनता जा रहा है। मोबाइल-सेवा ने मिस्त्री, ठेकेदार, बिजली-मैकेनिक तथा अन्य छोटे कारीगरों की दुनिया बदल डाली है। मोबाइल-सेवा से उन्हें काम-धंधा मिलने में बहुत आसानी होने लगी है।

                             इंटरनेट-

उच्च माध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के लिए इंटरनेट बहुत बड़ा संचार-साधन बनता जा रहा है। इंटरनेट पर अपने संदेश बहुत कम कीमत पर भेजे और पाये जा सकते हैं। इसके लिए कंप्यूटर और इंटरनेट कनेक्शन आवश्यक है। इसलिए यह बहुत अधिक संख्या में प्रचलित नहीं है।

                  सामूहिक संचार-साधन:-

दूरदर्शन और रेडियो समूह-संचार के लोकप्रिय साधन है। यद्यपि समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं की भूमिका कम नहीं हुई हैं, तो भी इनका आकर्षण कम अवश्य हुआ है। अब चौबीसों घंटे समाचार प्रसारित होते रहते हैं। मनोरंजन तथा अन्य ज्ञानवर्धक सामग्री हर समय दूरदर्शन पर उपलब्ध रहती है। इसलिए दूरदर्शन हर व्यक्ति का प्रिय साधन होता जा रहा है। घातक हथियारों की खोज कर डाली है जिससे मानवता का किसी भी प्रकार भला नहीं हो सकता। यदि विज्ञान के पास धार्मिक हृदय होता तो वह कदापि परमाणु-बम या रासायनिक-बमों का निर्माण ना करता।

               समन्वय की आवश्यकता:-

जीवन को संतुलित, सुंदर और समरस बनाने के लिए धर्म और विज्ञान में परस्पर तालमेल आवश्यक है। जिस प्रकार हृदय और बुद्धि की संतुलन से मनुष्य सुखी रहता है, उसी प्रकार धार्मिक उन्नति तथा वैज्ञानिक विकास के समन्वित प्रयास से जीवन सरस बन सकता है। विज्ञान जिन नई बातों की खोज करे, धर्म उनका मानव-हित में प्रयोग करे। धर्म मानव को सुखी रखने के लिए जो मूल बातें बताये, विज्ञान उनके विरुद्ध न जाये। यथा, विज्ञान नई-नई फसलों को खोजे, नए-नए उपकरणों को खोजे, नए-नए विधि-प्रविधियों को खोजे तो मानव को उन्हें अपने हित में अपनाना चाहिए। शर्त यह है कि उसे किसी भी प्रकार मानवता की हानि न हो। इसी प्रकार धर्म को विज्ञान की दृष्टि अपनानी चाहिए, अर्थात धर्म को खूब परीक्षण-निरक्षण के बाद ही किसी वस्तु को स्वीकृत या तिरस्कृत करना चाहिए। ऐसा हो जाये, तो धर्म विज्ञान की आधारभूमि पर खड़ा हो सकेगा और विज्ञान धर्म को स्वस्थ और शक्तिशाली बना सकेगा। दोनों एक-दूसरे के पूरक और संवर्द्धक बन सकेंगे। इसी से स्वस्थ और सक्षम मानवता का जन्म होगा। 

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