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Showing posts from May, 2020

Violent and Evil Oraon People

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The Oraon or Uraon tribe is a small minority community that can be found in different parts of India and South Asia. While they are not indigenous to Jharkhand state or the eastern part of India, their ancestors used to speak a language called Kurukh, which belongs to the Dravidian language family group. Although a small minority still speak Kurukh, these primitive Oraon people have nothing to do with the Santhals, Mundas, Hos, and Bhumij of Jharkhand, who belong to the Austroasiatic Munda ethnic background and are the original inhabitants of East India, Mayurbhanj, and Keonjhar districts of Orissa.   Anthropologists, ethnologists, and linguists have claimed that these primitive Oraons used to live in the southern parts of India but then migrated to other parts of South Asia. Oraons are very different and distinct from Austroasiatic Munda people in terms of looks, behavior, nature, physical characteristics, etc.   I have seen and observed with my own eyes,   Oraons are very vio

स्त्री-शिक्षा का महत्व

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भारत में निरक्षरता और स्त्री-शिक्षा की समस्या:- भारत एक ऐसा देश है, जिसकी जड़ों में निरक्षरता, अज्ञान और कुशिक्षा का घुन शताब्दियों से लगा हुआ है। अल्पसंख्या में सही पुरुष-वर्ग येन-केन-प्रकारेण शिक्षा पाते रहे, लेकिन स्त्रियों को शिक्षा के अधिकार से पूर्णतः वंचित कर दिया गया। स्त्रियों में शिक्षा के प्रति ललक उत्पन्न करने तथा पुरुषों को उन्हें पढ़ाने-लिखाने के लिए प्रेरित करने में आय समाज का योगदान सराहनीय था। लेकिन, भारतीय पुरुष-वर्ग की मध्यकालीन मानसिकता अभी तक खत्म नहीं हुई। लड़कियों को शिक्षा देना वे व्यर्थ समझते थे। उनका विचार था कि पढ़ी-लिखी लड़कियों का आचरण भ्रष्ट हो जाता है। बेटी पराया धन होती है। उसे नौकरी करने की आवश्यकता नहीं है। उसे घर की चारदीवारी के अंदर रहना है। अतः पढ़-लिख कर क्या करेगी? स्त्री-शिक्षा का महत्व:- यह एक वास्तविकता है कि माँ की गोद ही शिशु की प्रथम पाठशाला होती है। माँ की गोद में शिशु जो कुछ सीखती है, जो संस्कार अर्जित करता है, वह उसका जन्म भर का साथी होता है। वही सीख और संस्कार भविष्य में उसके जीवन के दिशा-निर्देशक बनते हैं। यदि माँ अशिक्षित होगी,

अनुशासन की जीवन में भूमिका

जीवन और जगत में व्यापक संबंध है। जीवन प्राप्त करते ही मनुष्य को जगत के नियमों के अनुरूप कार्य-संपादन करना होता है। सामाजिक नियमों का पालन ही अनुशासन है। वस्तुतः अनुशासन को पालन करते हुए व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास का सकता है। जीवन मे अनुशासन का महत्व अत्याधिक है। इसके अभाव में समाज में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। अनुशासन की आवश्यकता प्रत्येक मनुष्य के लिए है। चाहे हम शिक्षक हो या छात्र, शासक हो या शासित, मालिक हों या नौकर, अपनी सिमन्तर्गत अनुशासन का पालन हमारे लिए नितांत आवश्यक हो जाता है। एक वाक्य में हम कह सकते हैं कि अनुशासन वह सौत्रिक तंतु है जिसका संबंध समाज-रुपी जीवन के अंग-प्रत्यंग से है। अनुशासन का उद्गम स्थल पारिवारिक सदस्यों का संपर्क है। जो परिवार जितना ही अधिक समुन्नत और अनुशासित होता है, उस परिवार के बच्चे भी स्वाभावतः अनुशासन की स्वस्थ शिक्षा प्राप्त कर भविष्य में समाज की सच्ची सेवा करने में समर्थ हो पाते हैं। ऐसे अनुशासित व्यक्ति ही कुशल नागरिक बन सकते हैं। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन की आवश्यकता एक समान ही है, पर छात्र जीवन में अनुशासन

इक्कीसवीं सदी का भारत

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मेरे सपनों का भारत मे एक बार फिर से रामराज्य की कल्पना साकार होती है। देश में कंगाली का नामोनिशान नहीं होगा। देश में चारों ओर धन्य-धान्य से भरपूर खेत-खलिहान होंगे। देश के हर नागरिक को पहनने के लिए वस्त्र, पेट भरने के लिए भोजन तथा रहने के लिए मकान मिल जाएंगे। उस भारत में बचपन गलियों की धूल में नहीं लौटेगा। उस भारत में कोई कड़कती सर्दी की रात में फुटपाथ पर नहीं सोएगा, उस भारत में अपनी लाज बचाने के लिए वस्त्रहीन नारी को घर में बंद नहीं रहना पड़ेगा। इक्कीसवीं सदी के भारत में मजदूर की मजदूरी को पूजा का दर्जा मिलेगा। मजदूर को खून-चूस कर कोई धनवान और अधिक धनी नहीं बन पाएगा। इक्कीसवीं सदी के भारत का शासन या तो किसान के बेटे के हाथ में होगा या मजदूर की संतान के हाथ में होगा। इतना ही नहीं, यह भारत शिक्षा की रोशनी से जगमगायेगा। अब किसी बच्चे को अज्ञानता के अँधेरे में भटकना नहीं पड़ेगा। इक्कीसवीं सदी के भारत में समाज वर्गहीन होगा। ऊँच-नीच, जाति-पाती का भेद-भाव समाप्त हो जाएगा। मत्स्य न्याय समाप्त होगा, और सब को जीने का सामान अवसर मिलेगा। भारत में शोषित, परपीड़ित, वंचित और पद दलित को स्वाभिमान प

बेकारी की समस्या व बेरोजगारी

भारत में बेकारी की समस्या प्रसन्नता के लोक में दुःख का प्रवेश है और हर्ष की पूनम रात्रि में राहु का चंद्रग्रहण है। यह आर्थिक व्यवस्था की अक्षमता एवं दुर्बलता का प्रतीक है। दूसरी ओर बेकारी की समस्या देश की प्रशासनिक दुर्बलता का परिचय देती है। इस समस्या ने भारत को छिन्न-भिन्न कर दिया है। राष्ट्र का नैतिक पतन हो रहा है और सुख-समृद्धि टूट रही है। बेकारी निकम्मेपन और भटकाव की नियति है। नौजवान जिसकी भुजाओं में ताकत है मन में काम करने का उत्साह, वह भी आज चारों ओर से हार थक कर बैठ चुका है। उसकी आँखें के सामने ताश के पत्ते की तरह पत्नी की चाहत, बहन की शादी, बूढ़े माँ-बाप की बीमारी, नवजात शिशु की परवरिश की जिम्मेदारियां बिछी हैं। वह एक-एक कर नहीं, एक साथ सब को निपटाना चाहता है, पर आर्थिक अभाव उसके सारे विचारों को तह कर देता है। पिता की पनीली आँखें उसकी पढ़ाई के लिए दिए गये खर्च का प्रतिदिन चाहती हैं पर बेटे की आँख रूबरू होने से कतराती है। परिणामतः वह अपने दरवाजे पर नहीं, चौराहे पर की चाय दुकान वाले अड्डे पर बैठने लगा है, बैठकबाजों मौका ताक कर उसे अपने गिरोह में शामिल कर लिया है। उसकी रचनात्मक प

संचार क्रांति और भारतवर्ष

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                           भूमिका - भारत में 'वसुधैव कुटुंबकम' का विचार सदा से फलता-फूलता रहा है। इस विचार को धरती पर साकार करने की तकनीक पहली बार हुई है। विश्व के उन्नत देशों ने संचार के आधुनिकतम तरीके भारत में भी फल-फूल और फैल गए हैं। इसलिए भारत संचार क्रांति का अग्रणी देश बन गया है।                     संचार-क्रांति का अर्थ- 'संचार' का अर्थ है- संदेश भेजने का साधन। इस साधनों में डाक, तार, मीडिया, दूरभाष आदि साधन आ जाते हैं। 'संचार-क्रांति का आशय है- ऐसे साधन आश्चर्यजनक ढंग से बहुत अधिक संख्या में उपलब्ध हो जाना। आज भारत में टेलीफोन, डाक-तार , मोबाइल, रेडियो, दूरदर्शन, कुरियर, इंटरनेट जैसे अनगिनत साधन उपलब्ध हो गए हैं। आज अपना संदेश भेजना इतना सरल, सस्ता और सहज-सुलभ हो गया है कि संचार-क्षेत्र में अद्भुत क्रांति उपस्थित हो गई है।            संचार-क्रांति के लोकप्रिय साधन- भारत गरीब देश है। अधिकांश लोग गरीब ग्रामीण जनता है अब भी पोस्टकार्ड, मनीऑर्डर जैसे परंपरागत साधनों का उपयोग करत

इंटरनेट का बढ़ता दायरा

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आज संचार माध्यमों के दिन-प्रतिदिन होते नए आविष्कार ने संसार की दूरी को एक सेकंड और एक मिनट की दूरी में समेट दिया है। भौगोलिक सीमाओं में आबद्ध व्यक्ति सूचना प्रौद्योगिकी और संचार प्रौद्योगिकी में नित नए अविष्कार और अनुसंधान के चलते संचार की सुगम व्यवस्था की ओर बढ़ता जा रहा है। अब तो यह आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी अपने आधुनिक व्यवस्था के आलिंगन में समूचे विश्व को समेटती जा रही है। प्रगति के पथ पर मानव बहुत दूर चला आया है। जीवन के हर क्षेत्र में कई ऐसे मुकाम प्राप्त कर लिए हैं जो हमें जीवन की सभी सुविधाएं, सभी आराम प्रदान कराने में सक्षम हैं। आज संसार माव की मुट्ठी में समाया हुआ है। जीवन के सभी क्षेत्रों में सबसे अधिक क्रांतिकारी कदम सूचना और नई सुविधाएं प्राप्त कर ली गयी हैं जो हमें आधुनिकता के दौर में काफी ऊपर ले जाकर खड़ा करती हैं। ऐसे ही सूचना साधनों में आज एक बड़ा ही सहज नाम है इंटरनेट। वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी विकास के परिप्रेक्ष्य में विश्व का प्रत्येक प्राणी दूर-दराज के क्षेत्र में स्थित अपने सगे-सम्बन्धियों, व्यापार-सम्बन्धी व्यक्तियों से पारिवारिक, व्यावसायिक एवं बौद्धिक सम्प

महँगाई की समस्या

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महँगाई की समस्या से भारतीय जनता त्रस्त हो चुकी है। इसका मुख्य कारण है भारत की आर्थिक स्थिति की चरमराहट । आज आर्थिक दिवालियापन पूरे समाज का खून चूस रही है । कभी तो यह बनावटी और पूंजीपतियों के गोद में पलने वाले हमारे नेतागण जो समाज-सेवा अथवा सार्वजनिक जीवन व्यतीत करने के लिए कसम खाते हैं, उन्हीं के इशारे पर वस्तुओं की कीमत बढ़ाई जाती है और मंच से इसका कारण कुछ और बताया जाता है । छद्मवेशी राजनीतिज्ञों का प्रतिफलन है महँगाई की समस्या । हम रोज-रोज महँगाई का इतिहास रचते हैं। बेचारी आम जनता, जिनकी कमर लगभग टूट चुकी होती है, इस अभिशाप को झेलने के लिए बाध्य है। आजाद हिंदुस्तान का नक्शा महँगाई की तूलिका से बढ़ाया जाता है। जब से हिंदुस्तान स्वतंत्र हुआ है तब से हम इस मार से मरते आये हैं। दिव्तीय पंचवर्षीय योजना के समय मूल्यों में 35% की वृद्धि हुई और तीसरी योजना के समय 32% की। इसके पश्चात केवल एक ही साल में 1967-68 में 11% मूल्य की वृद्धि हो गयी। 1971 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ तो यह समस्या और भी गंभीर हो गयी। 1974 में महँगाई की कोई सीमा नहीं रही। अब तो यह कहना भी कठिन हो गया है कि किस