Violent and Evil Oraon People

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The Oraon or Uraon tribe is a small minority community that can be found in different parts of India and South Asia. While they are not indigenous to Jharkhand state or the eastern part of India, their ancestors used to speak a language called Kurukh, which belongs to the Dravidian language family group. Although a small minority still speak Kurukh, these primitive Oraon people have nothing to do with the Santhals, Mundas, Hos, and Bhumij of Jharkhand, who belong to the Austroasiatic Munda ethnic background and are the original inhabitants of East India, Mayurbhanj, and Keonjhar districts of Orissa.   Anthropologists, ethnologists, and linguists have claimed that these primitive Oraons used to live in the southern parts of India but then migrated to other parts of South Asia. Oraons are very different and distinct from Austroasiatic Munda people in terms of looks, behavior, nature, physical characteristics, etc.   I have seen and observed with my own eyes,   Oraons are very vio

भारतीय किसान


भारतीय किसान आत्मविश्वास, धैर्य, साहस, कर्मठता और दृढ़ चरित्रता का प्रतीक है। यह जितना कठोर श्रम करता है उतना शायद ही किसी और पेशे के लोग करते हों। फिर भी अभाव और जिल्द-जल्लाद की जिंदगी बसर करने के लिए मजबूर हैं। हल-कुदाल और माथे पर खाची की टोकरी लेकर सुबह होते ही अपने कर्मक्षेत्र की ओर उन्मुख हो जाता है। न इस किसान के पाँव में पहनी है, न सिर पर टोपी, घुटने तक धोती, अंधविश्वासों से घिरा, रूढ़ियों से जकड़ा, मुख-मंडल पर चिंता की रेखाएँ स्पष्ट रूप से अपनी दरिद्रता की कहानी कहती नज़र आती है।

भारतीय किसान न छद्मवेशी राजनीतिज्ञों की राजनीति जानता है न कृष्ण की गीता । कर्मयोग क्या है? इसे यह भी नहीं जानता। फिर भी कर्मयोग से सुपरिचित है। कर्म करना ही इसका प्रधान धर्म है। धर्म की परिभाषा क्या है? इसे भी नहीं जानता । सच्चाई के साथ अपने कर्मों का इतिहास बुलंद करता है। भाग्य की छाती को ही सब कुछ समझता है। खेत जोत कर उसमें बीज डाल देता है। उस बीज को उगाने के लिए कठोर परिश्रम करता है मगर भाग्य भरोसे! ईश्वर पर इतना विश्वास करता है कि उसके सहारे सारे परिणाम की आशा करने लगता है। वह अपनी सनातन व्यवस्था पर मोर्चे संभाले रहता है।

धनवान गर्मी से बचने के लिए कूलर, पंखे, बर्फ पता नहीं क्या-क्या चीज़ों का उपयोग करता है, मगर किसानों की पाँवो में पहनी भी नसीब नहीं होती। कैसी विडम्बना है, जो दुनिया का पेट भरता है उसे ही भूख की पीड़ा और दरिद्रता घेरे रहती है। जाड़े में काँपती हुई उसकी हड्डियां किसी की सहारा नहीं माँगती, बल्कि उस अवस्था में भी किसी का सहारा बनकर अपने को सौभाग्यशाली मानता है।

भारतीय किसान निरक्षर भले ही है, अशिक्षित नहीं है। इसने जीवन के खेत-खलिहान में वृहत शिक्षा पायी है। अतः इसकी शिक्षा जीवनोपयोगी और व्यावहारिक है। आसमान का रंग और हवा का रुख देखकर यह बतला देता है कि पानी बरसने वाला है या आँधी आने वाला है। प्राणि विज्ञान या वनस्पति विज्ञान का यह क, ख, ग भी नहीं जानता, पर गया-बैलें और अपनी फसल के दुःख दर्द की भाषा अच्छी तरह समझता है।

भारतीय किसान नीरस होता है, उसकी जिंदगी निरसता के आवरण में अपने को फैला नहीं पाता। इस बात को मैं मानने से साफ इंकार करता हूँ। सरस प्रकृति के साथ रहने वाले इस किसान की सरसता अगर देखनी हो तो इसके विरहे का अलाप सुनें, ढोलक-झाल लेकर जब यह 'होली' और 'चैती' गाने बैठता है तो इसकी तन्मयता देखते ही बनता है। फाल्गुन की बयार शरीर में लगते ही जब वह मस्त होकर 'ब्रज में खेलें मोहन होली रे' कह उठता तब इसके हृदय की पुकार को समझे। हां, इतना अवश्य है कि इसकी सरसता बाबुओं की तरह उचछृन्खल और अव्यावहारिक नहीं होता।

त्रिमंड लगाकर, गौरिक वस्त्रों में विभूषित बड़े-बड़े तपस्वी जब भारतीय किसान की तपस्या देखते हैं तो उसकी मन:स्थिति काँप उठता है। जिसने जीवन में आराम को हराम समझा है, श्रम को भगवान माना है, कर्म को पूजा। इसकी निश्छलता और निर्विकार भावनाओं को सबने आदर दिया, मगर दबे जुबान से। सच्चाई को कह पाने की सामर्थ्य शायद किसी में हो। भारतीय किसान हिमालय की गोद से अपने लिए जड़ी-बूटियां लाता है, उसी के पवित्र जल को जीवन का अमृत समझता है। 

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